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कोई शहर गुमशुदा है / शेरजंग गर्ग
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कोई शहर गुमशुदा है कोई गाँव अनमना है
इन्हीं खास उलझनों से नया आदमी बना है
अभी रोशनी का टुकड़ा, नहीं आसमाँ से उतरा
नई कोंपलों पे छाया यहाँ कोहरा घना है
तुम्हे चन्द मुँहलगों ने बहका दिया है शायद
ज़रा रूप अपना देखो मेरा दर्द आईना है
नहीं मंज़िलों को मैंने दिया दोस्तों का दर्ज़ा
सभी कामयाबियों से मेरा युद्ध-सा ठना है
मेरे ख़ुशनुमा इरादो, मेरी देखभाल करना
किसी और से नहीं है, मेरा खुद से सामना है