भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काफ़ी नहीं तुम्हारा / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काफ़ी नहीं तुम्हारा ईमानदार होना
भैया बड़ा ज़रूरी दूकानदार होना

है वक़्त का तकाज़ा रौ में शुमार होना
मक्खन किशोर होना चमचा कुमार होना

सौजन्य का कदाचित तू मत शिकार होना
सब चाहते है वरना तुझ पर सवार होना

चुल्लू में डूबने का अब लद चुका ज़माना
उल्लू से दोस्ती कर क्या शर्मसार होना

लँगड़ा रही है भाषा, कितना अजब तमाशा
घटिया तरीन जी के उँचे विचार होना