भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह शख़्स(2) / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:53, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=चुका भी हूँ मैं नहीं! / …)
मौन
वह उर में -एक
घुटी हाय-सा कसा।
अन्त तक जो फिर, क्रूर
विषम घास -सा बसा।
केवल तम वह,एक
मौन
धूम-
एक छल-क्रम वह।
व्यर्थ
पांथ-अनादर भाव,
जो छिप-छिप कर हँसा
अन्दर-अन्दर।