भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंतहीन दौड़ (कविता) / अमरजीत कौंके

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:28, 5 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह=अंतहीन दौड़ / अमरजीत कौंके …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं रेस का घोड़ा हूँ
मुझ पर हर किसी ने
अपना-अपना दाँव लगाया है

किसी ने ममता
किसी ने फ़र्ज़
संस्कार, परम्पराएँ
कहीं मोहब्बत, मोह, भय
किस-किस तरह का वास्ता पाया है

अनगिनत सदियों से
दौड़ रहा हूँ मैं
अंतहीन दौड़,

दौड़ता दौड़ता कभी गिरता हूँ
उठता हूँ
फिर दौड़ने लगता हूँ
अंतहीन दौड़

मेरी कोई जीत मेरी नहीं
मेरी कोई हार मेरी नहीं
मेरा कुछ भी मेरा नहीं

मोह, मोहब्बत, ममता, फर्ज़,
रिश्तों का कर्ज़
उतारने के लिये
मैं लगातार दौड़ रहा हूँ
अंतहीन दौड़

मैं लगातार दौड़ रहा हूँ

और
पीछे छूटती जा रही हैं
कविताएँ ।


मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा