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मौन-मिटा / केदारनाथ अग्रवाल
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मौन-मिटा
वाक्-चपल
लोग हुए,
भीतर से बोले
जीवन की बानी।
सम्पुट पंखुरियों का
महादेश
अन्ततः खुला
गमक उठी
आत्म-गंध
रंग-रूप छलका।
रचनाकाल: ०२-०३-१९७७