भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ से / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 7 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=मार प्यार की थापें / के…)
परांगमुख हो गया
पेड़ से टूटकर
पेड़ का पत्ता।
पाताल में
पैठता चला गया
पुरुषार्थी मेघों का
पुरातन
पराक्रमी यात्री।
देख में
तड़पती है
देश की राजनीति
कल्थे खाती--
मरती चली जाती।
जप और जाप से
जिन्दगी जिलाते हैं
काठ के उल्लू;
मरी राजनीति में
असफल घुघुआते हैं
काठ के उल्लू।
रचनाकाल: १७-०७-१९७७