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पेड़ से / केदारनाथ अग्रवाल

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परांगमुख हो गया
पेड़ से टूटकर
पेड़ का पत्ता।

पाताल में
पैठता चला गया
पुरुषार्थी मेघों का
पुरातन
पराक्रमी यात्री।

देख में
तड़पती है
देश की राजनीति
कल्थे खाती--
मरती चली जाती।
जप और जाप से
जिन्दगी जिलाते हैं
काठ के उल्लू;
मरी राजनीति में
असफल घुघुआते हैं
काठ के उल्लू।

रचनाकाल: १७-०७-१९७७