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गाँव हो या शहर / केदारनाथ अग्रवाल

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गाँव हो या शहर
बचा कोई नहीं
दगहिल खराब होने से
तलातली पतन से।

हराम हो गया
सुबह से शाम तक जीना--
रात में सोना।

असम्भव हो गया
सुरक्षा की सड़कों पर
सुरक्षा से चलना।

किसी का चाकू
किसी के पेट में घुसा
और आदमी का चिराग
समय से पहले बुझा।

बढ़ते-बढ़ते
बेहद बढ़ गया गम
अराजकता नहीं हो पा रही कम।

रचनाकाल: २२-०२-१९७८