भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब के बरस भेज भईया को बाबुल / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 7 अक्टूबर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब के बरस भेज भईया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय रे !
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ दीजो संदेशा पठाय रे !

बैरन जवानी ने छीने खिलौने और मेरी गुड़िया चुराई
बाबुल मैं थी तेरे नाज़ों की पाली फिर क्यों हुई मैं पराई
बीते रे जुग कोई चिठिया न पाती, न कोई नैहर से आए रे !

अम्बुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आंगन में बाबुल सावन की ठंडी बहारें
छलके नयन मोरा, कसके रे जियरा, बचपन की जब याद आए रे !

यह गीत शैलेन्द्र ने फ़िल्म 'बंदिनी' के लिए लिखा था ।