भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सात कविताएं-2 / लोग ही चुनेंगे रंग
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> क…)
कराची में भी कोई चाँद देखता है
युद्ध सरदार परेशान
ऐसे दिनों में हम चाँद देख रहे हैं
चाँद के बारे में सबसे अच्छी खबर कि
वहाँ कोई हिंद पाक नहीं है
चाँद ने उन्हें खारिज शब्दों की तरह कूड़ेदानी में फेंक दिया है.
आलोक धन्वा, तुम्हारे जुलूस में मैं हूँ, वह है
चाँद की पकाई खीर खाने हम साथ बैठेंगे
बग़दाद, कराची, अमृतसर, श्रीनगर जा जा
अनधोए अँगूठों पर चिपके दाने चाटेंगे.