भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ लिख जाओ / राजेश चड्ढ़ा
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 14 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>तुम - इस वक़्त भी मौजूद हो , सोच के काग़ज़ पर , लफ़्ज़ों की शक्ल मे…)
तुम -
इस वक़्त भी
मौजूद हो ,
सोच के
काग़ज़ पर ,
लफ़्ज़ों की शक्ल में ,
ये तो हद है...!
कभी-
बिना सोचे भी
उतर जाओ ,
बहुत जी लिया
ख़यालों में ,
अब ज़मीनी
हक़ीक़त पर आओ...!
सूरज भर
छिपते फिरे हो ,
अब चांद भर
दिख जाओ...!
कुछ भी
ना कर पाओ....
तो...
चलो.....
कुछ लिख जाओ......