दिन भरि गाछक छाँह जकाँ
क्यो संग चलय अभिराम
साँझ परैत बरैए मन मे
दीप जकाँ एक नाम ।
बरिसत कहियो वन-पाँतर
चेतन मेघ क जलधार
एक चिरायु तृषा सँ जीवित
ई जलहीन इनार
स्नेह क स्वाति-विंदु ले' भटकल
चातक चारू धाम।
राति-विराति पाँखि तोरै अछि
मौन क सोनचिरै
भोरे सिङरहार तर अगबे
दूभि-अछत झहरै
फूल क वाण अनिल संधानय
मारय ठाम-कुठाम।
पुरना काँपी मे गीत क सङ
देखि मयूर क पाँखि
शापित यक्ष क कथा सुमिरि
भरि आयल दूनू आँखि
आर कते दिन शीतलहरि चलतै
ई जानथि राम।