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एक के बाद एक हुए / केदारनाथ अग्रवाल
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एक के बाद एक हुए
तीन हत्याकांड
एक-से-एक
लोमहर्षक।
निरंकुश हुआ नरसंहार
कि लाशों से
पट गई धरती,
लहुलुहान हो गया मसान।
हतप्रभ निहारता-
बुदबुद बोलता
ध्वंसावशेषी ज्ञान,
असमर्थ आक्रोश की
लार टपकाता है
इतिहास की
लड़खड़ाती जीभ
बाहर निकाले।
हाँफती हवा
काँखती-कराहती
विलाप करती है,
जमीन-आसमान में
लोटती-पलटती
धूल उड़ाती।
दूरातिदूर अंतरिक्ष में
वहाँ, निश्चित बैठा, काल-
मुंडमाल गले से लटकाए,
मृत्यु की
जय-जयकार करता है।
रचनाकाल: २८-०२-१९८०
बिहार के तीन हत्याकांड