भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर सावन रुत की पवन चली / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 28 मई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी }} Category:गज़ल फिर सावन रुत की पवन चली तुम या...)
फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आये
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आये
फिर कुँजें बोलीं घास के हरे समन्दर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आये
फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अम्रत रस की बूँद पड़ी तुम याद आये
पहले तो मैं चीख़ के रोया और फिर हँसने लगा
बादल गर्जा बिजली चमकी तुम याद आये
दिन भर तो मैं दुनिया के धन्धों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये