Last modified on 17 अक्टूबर 2010, at 23:47

मौन-मिटा / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 17 अक्टूबर 2010 का अवतरण ("मौन-मिटा / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मौन-मिटा
वाक्-चपल
लोग हुए,
भीतर से बोले
जीवन की बानी।

सम्पुट पंखुरियों का
महादेश
अन्ततः खुला
गमक उठी
आत्म-गंध
रंग-रूप छलका।

रचनाकाल: ०२-०३-१९७७