Last modified on 18 अक्टूबर 2010, at 22:23

काल-कवलित हुए यहीं / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:23, 18 अक्टूबर 2010 का अवतरण ("काल-कवलित हुए यहीं / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

काल-कवलित हुए यहीं
अहिंसावतारी
महाबीर तीर्थंकर
आम आदमी के समान।

अब भी
हवा में व्याप्त
हुंकारते-हुआते हैं यहाँ
आदमियों को डराते
मौत के दूत।

अकेला सूर्य
शासन करता है,
बान और बरछी-मारता
यमदूतों को-
‘जल मंदिर’ के जलाशय में,
मछलियाँ तैरती हैं जहाँ
कोइयों के कुल में,
कुलबुलाती।

रचनाकाल: २८-०२-१९८०



पावापुरी में पहुँचकर