किस कदर गर्म है हवा देखो,
जिस्म मौसम का तप रहा देखो ।
बदगुमानी-सी बदगुमानी है,
पास होकर भी फ़ासला देखो ।
वे जो उजले लिबास वाले हैं,
उनकी आँखों में अज़दहा<ref>अजगर</ref> देखो ।
हो अंधेरा सफ़र, सफ़र ठहरा,
ले के चलते हैं हम दिया देखो ।
खेलता है जो मौत से होली,
क्या करेगा वो मनचला देखो ।
अम्न ही अम्न सुन लिया, लेकिन,
मक़तलों का भी सिलसिला देखो ।
इस ज़माने में जी लिया 'रहबर'
मर्दे-मोमिन<ref>साहसी पुरुष</ref> का हौसला देखो ।
रचनाकाल : 01 मई 1980, दिल्ली
शब्दार्थ
<references/>