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मैं अचानक जाग उठा था बिन कारण ही
कोई उदास-सा सपना देखा था शायद मैंने
पतझड़ का मौसम, पेड़ झलकाएँ नंगापन ही
धुँधला चाँद खिड़की से झाँके, पहने था गहने
पतझड़ में शांत खड़े थे घर-बंगला औ' बाड़ी
अर्धरात्रि में मृत पड़े थे सब पेड़ औ' झाड़ी
पर रहा भटके बच्चे-सा कहीं चीख़ रहा था
दूर वन में, काँव-काँव..., एक कौआ अनाड़ी
(1903)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय