भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं अचानक जाग उठा था / इवान बूनिन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 28 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=इवान बूनिन |संग्रह=चमकदार आसमानी आभा / इवान ब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: इवान बूनिन  » संग्रह: चमकदार आसमानी आभा
»  मैं अचानक जाग उठा था

मैं अचानक जाग उठा था बिन कारण ही
कोई उदास-सा सपना देखा था शायद मैंने
पतझड़ का मौसम, पेड़ झलकाएँ नंगापन ही
धुँधला चाँद खिड़की से झाँके, पहने था गहने

पतझड़ में शांत खड़े थे घर-बंगला औ' बाड़ी
अर्धरात्रि में मृत पड़े थे सब पेड़ औ' झाड़ी
पर रहा भटके बच्चे-सा कहीं चीख़ रहा था
दूर वन में, काँव-काँव..., एक कौआ अनाड़ी

(1903)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय