गूगल अर्थ पर गाँव / सत्यनारायण सोनी
गूगल अर्थ पर
गाँव खोजकर
बड़ी खुश हुई बिटिया
खिल गई बांछें
और एक ही किलक ने उसकी
बुला लिया
रसोईघर में आटा गूंधती मां को।
लिथड़े हाथों मां ने उसकी
देखा बड़े कौतूहल से
पूरा का पूरा गाँव।
गली, तालाब, स्कूल अपना मौहल्ला और
देख लिया घर भी अपना।
बोली बिटिया-
इस पर दुनिया का हर गाँव,
गली, बाजार, दरख्त, खेत, समुद्र
सब दिख जाता है साफ-साफ।
बड़ी जिज्ञासा और उमंग भर दिल में अपने
पूछा उसकी मां ने-
नानी का गाँव, घर भी दिखला देगी?
माथापच्ची करते-करते
खोज निकाला जब बिटिया ने
तो हर्ष का पार नहीं रहा और
बैठ गई निकट ही खाट पर,
गड़ा दीं नजरें
कम्प्यूटर स्क्रीन पर।
यह बस-अड्डा, यह गली, यह चौगान
और चौगान में
इस दरख्त के पास वाला
बड़ा-सा यह घर.....
देर तक निहारती रही बिटिया की मां
फिर टपक पड़ी दो बूँद
आँखों से उसके,
जिनमें अब तक थी
एक सुनहरी चमक।
नानी के घर में होती
काश तेरी नानी भी पर...
रुंध गया गला और कह पाई
बस एक कहावत अपनी भाषा में
सुना था जिसे कभी मां से अपनी-
'सासू बिना किस्यो सासरो
अर मां बिना किस्यो पी'र।'