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मेरा घर / विनोद स्वामी
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पिछली बरसात में
रोया
मेरा घर
छत को
आंख बना ।
अबके
आंधी में
उड़ गई
छप्पर की पगड़ी।
दीवारें
जर्जर
पर
कितनी है तगड़ी।