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मर गए हैं बिना मरे / केदारनाथ अग्रवाल

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हम, जो मर गए हैं
बिना मरे-तुम्हारी बदौलत
वस्तुओं की तलाश में
कीमतों से लड़ते
खून खच्चर के बगैर
तुम शाप दो
कि हम न जिएँ
तुम्हें मरा देखने के लिए।

रचनाकाल: २०-११-१९६७