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कौन कहता है / जाँ निसार अख़्तर
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कौन कहता है तुझे मैनें भुला रखा है
तेरी यादों को कलेजे से लगा रखा है
लब पे आहें भी नहीं आँख में आँसू भी नहीं
दिल ने हर राज़ मुहब्बत का छुपा रखा है
तूने जो दिल के अंधेरे में जलाया था कभी
वो दिया आज भी सीने में जला रखा है
देख जा आ के महकते हुये ज़ख़्मों की बहार
मैनें अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा है