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जिबह-बेला / निलय उपाध्याय
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मेरे मुँह मे ठुँसा है कपड़ा
ऐंठ कर पीछे बँधे हैं हाथ
कोई कलगी नोचता हॆ
कोई पाख
कोई गर्दन काटता हॆ
कोई टाँग
हलक मे सूख गई हॆ
मेरी चीख़
मारने से पहले जैसे बिल्ली
चूहे से खेलती है
कोई
खेल रहा है हमसे
लो
फिर आ गए
फिर आ गए सात समन्दर पार से
कसाई....
फिर आया गँडासा
दिल्ली के हाथ