भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लुगाई : दो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:43, 25 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>थारै होठां खातर कोनी बतळावणो-मुळकणो-हंसणो थारै नैणा खातर कोनी…)
थारै होठां खातर कोनी
बतळावणो-मुळकणो-हंसणो
थारै नैणा खातर कोनी
काजळ री तीखी धार
थारै डील खातर कोनी
रातै गाभां रो सुख
थारी जीभ खातर कोनी
ताती रोटी रो स्वाद
तीज तिंवार
एढ़ा-टांकड़ा
आडै दिन-सा आवै अर जावै
सांस रै सागै
ऊमर रा दिन ओछा करै तूं
बण पाखण-पूतळी !