भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कूंट कढावै / सांवर दइया

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 25 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न्हायी-धोयी
काजळ घाल्योडी
गोरीगोट छोरी
रीसाणी हो रोवण लागी
   मसळ ली आंख्यां

म्हैं बोल्यो-
देख बबली
आभै कानी देख
थारी कूंट कढावै
   सावणिया लोर !