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प्राण हँस कर ले चला जब / महादेवी वर्मा
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काव्य संग्रह दीपशिखा से
ओ चिर नीरव!
मैं सरित विकल!
तेरी समाधि को सिद्धि अकल,
चिर निद्रा में सपने का पल
ले चली लास में लय गौरव!
मैं अश्रु-तरल!
तेरे ही प्राणों की हलचल,
पा तेरी साधों का सम्बल,
मैं फूट पड़ी ले स्वर-वैभव!
मैं सुधि-नर्तन!
पथ बना, उठे जिस ओर चरण,
दीश रचता जाता नूपुर-स्वन,
जगता जर्जर जग का शैशव!
मैं पुलकाकुल!
पल पल जाती रस गागर ढुल,
प्रस्तर के जाते बन्धन खुल,
लुट रहीं व्यथा-निधियाँ नव-नव!
मैं चिर चंचल,
मुझसे है तट-रेखा अविचल,
तट पर रुपों का कोलाहल,
रस-रंग-सुमन-तृण-कण-पल्लव!
मैं ऊर्मि विरल!
तू तुंग अचल, वह सिन्धु अतल,
बाँधे दोनों को मैं चल,
धो रही द्वैत के सौ कैतव!
मैं गति विह्वल!
पाथेय रहे तेरा दृग-जल,
आवास मिले भू का अंचल,
मैं करुणा की वाहक अभिनव!