भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सबदां रै मारफत / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:39, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां…)
केई सवाल एङा ई हुवै
जकां रै जबाब रो
कोनी हुवै ठिकाणे
ए सवाल टंग्योङा है
स्रिस्टी में जुग-जुगां सूं।
स्यात
सवाल रचणियां नै
फगत सवाल सुं मतळब हुवै
जबाब सुं हुवै ई नीं सरोकार।
इण रो मतळब ओ कोनी
कै जबाब सोधीज्या ई कोनी
अलेखूं लोग
आपरी जूण खपाई है
पडुत्तर री खोज-पङताल में
अबै आ बात बीजी है
कै उणरौ उथळो लाध्यो कोनी
अर सवाल अजलग ऊभा है
मानखै सामीं
ललकारता - बकारता
पण जद सवाल है तो
जबाब अवस हुवैला
कठै न कठैई।
आवो आपां सोधां
सबदां अदीठ नै !