भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तरल मोती से नयन भरे / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 1 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा }} '''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काव्य संग्रह दीपशिखा से

तरल मोती से नयन भरे!
मानस से ले, उटे स्नेह-घन,
कसक-विद्यु पुलकों के हिमकण,
सुधि-स्वामी की छाँह पलक की सीपी में उतरे!
सित दृग हुए क्षीर लहरी से,
तारे मरकत-नील-तरी से,
सुखे पुलिनों सी वरुणी से फेनिल फूल झरे!
पारद से अनबींधे मोती,
साँस इन्हें बिन तार पिरोती,
जग के चिर श्रृंगार हुए, जब रजकण में बिखरे!
क्षार हुए, दुख में मधु भरने,
तपे, प्यास का आतप हरने,
इनसे घुल कर धूल भरे सपने उजले निखरे!