भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पतियारो / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण
थारै सूं हर करती बगत
कद सोची ही म्हैं
कै इण भांत
खिंड जावैला
आपणै सपनां रो संसार।
हणै ई
ओळूं रै ओळावै
म्हैं गोख आवूं
मन रै खुणां-खचूणां
उण दुनियां रो अैनाण।
म्हनैं पतियारो है !