भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रीत रो पानो : 1 / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


थारो प्रीत रो पानो
म्हैं सावळ संभाळ राख्यो है
ओरै री संदूक में।

नितूगै जोवूं
प्रीत री आ अणमोल सैनाणी
चाव सूं बांचूं
हेत रा हरफ
चाणचाण हरयो हुय जावै
सूखो ठूंठ बगत
हियै तांई पूगण ढूकै
मधरी-मधरी सौरम।

प्रीत रो पानड़ो
समंदर बण जावै
ओळूं रै आंगणै।