जंगल में भी खुशियाँ छाई,
आजादी का दिन आया।
हंसी-ख़ुशी और बड़े चाव से,
सबने वन को खूब सजाया।
बन्दर मामा ने सुन्दर सा,
ऊंचा मंच बनाया।
कोयल, मोर, पपीहे ने मिल,
राष्ट्र-गान था गाया।
वनराजा ने ली सलामी,
झंडा भी फहराया।
आजादी हित मर मिटने का,
सबको पाठ पढ़ाया
कदम ताल से ताल मिलाकर,
बजे बैंड शहनाई।
ढ़ोलक बोली ताक धिना-धिन,
नाच उठा लोमड़ भाई।
हाथी-भालू और गिलहरी,
खुश-खुश दिखते सारे।
देख की खातिर मिट जाएंगें,
गूंज रहे थे नारे।
खील, बताषे बंटी मिठाईयाँ
सबने जी भर खाई।
एक बनेंगें नेक बनेंगें,
शपथ हमें है भाई।