भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हैं टाबर / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराज भारतीय |संग्रह=रंग-रंगीलो म्हारो देस / शि…)
म्हैं टाबर पण तणुं बराबर
झूरूं बाळपणै री खातर
डांगर घेरूं नीरूं प्याऊं
घास लेण खेतां में जाऊं
खोदी काडूं खेत रूखाळूं
घर वाळां रा कारज सारूं।
ढ़ाबां पर बरतन भी रगडूं
जो देवै सो लेवूं न झगडूं
दूजां नै म्हैं भर-भर पुरसूं
बासी-खूसी नै म्हैं तरसूं।
म्हारी हाण रा पढ़वा जावै
खेलै-कूदै नाचै गावै
कुल्फी लाडू पेड़ा खावै
म्हारो मनड़ो बै तरसावै।
पढ़-लिख चोखो मिनख बणूं म्है
गांव गळी रो नांव करूं म्हैं
कद पूरो हुवैलो सुपनो
या सुपनों रैवैलो सुपनों।