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अकेला नहीं हूँ / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अकेला नहीं हूँ,
अकेला नहीं हूँ,
ज़माना नया साथ है,
और मैं भी
बड़ी ही खुशी से
सदा साथ उसके !
करोड़ों भुजाएँ
मुझे आज बल दे रही हैं,
अथक शक्ति मेरी
बिना रोक के ले रही हैं !
अनेकों क़दम गिर्द मेरे
निरंतर चले जा रहे हैं,
बढ़े जा रहे हैं !
- निराशा नहीं है,
- निराशा नहीं है,
किसी भी तरह की विवशता नहीं है !
रुकावट ठहरती न
जन-धार के सामने
सब उखड़ती चली जा रही हैं !
कि पिघला बरफ़
किस हिमालय-शिखर का ?
नयी भूमि को जो
बनाये चला जा रहा है,
निडर शान्त बस्ती
बसाये चला जा रहा है !
हरा,
लाल,
पीला,
गुलाबी चमन
आज उसी ने खिलाया,
मनुज को मनुजता बतायी,
दबे चेहरे की / गिरे चेहरे की
चमक भी बढ़ायी !
उसी ज़िन्दगी से मिलाओ चरण !
और हँस-हँस
उसी ज़िन्दगी से लड़ाओ नयन !