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अक्कड़ बक्कड़ / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
अक्कड़ बक्कड़ बंबे भो
अस्सी नब्बे पूरे सौ
सौ चूहों ने मिलकर बिल्ली
एक पकड़ ली जब
चारों पैर बाँध रस्सी में
खूब जकड़ ली जब
चले डुबाने उसे नदी में
रोई अब बिल्ली
खाकर कसम कहा रक्खूँगी
मैं सबसे मिल्ली
हर चूहे के पैर छुए फिर
माँगी जब माफी
हाथ जोड़कर विनती भी की
चूहों से काफी
तब चूहों ने छोड़ा उसको
भागी अब बिल्ली
सब कहते हैं जाकर पहुँची
वह सीधे दिल्ली
अब वह दिल्ली में करती है
हरदम शैतानी
उसे देखकर के आई हैं
कल मेरी नानी
अक्कड़ बक्कड़ बंबे भो
अस्सी नब्बे पूरे सौ।