अणूँती ही करड़ी है
मूँजी दिन री चिमठी,
फिरबो करसी रोज
सूरज री म्हौर
हाथ में लियाँ,
पण खरचीजै कोनी,
सिंझ्या पड़ै’र
खूंजियै में घाल लै!
अणूँती ही करड़ी है
मूँजी दिन री चिमठी,
फिरबो करसी रोज
सूरज री म्हौर
हाथ में लियाँ,
पण खरचीजै कोनी,
सिंझ्या पड़ै’र
खूंजियै में घाल लै!