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अपरिभाषित मैं / मोना गुलाटी
Kavita Kosh से
मुझे नहीं होना है लड़की
या पागल
या कुछ और
मुझे भीड़ में से परिचित चेहरों के खो जाने की
कल्पना करने से अब
दहशत नहीं होती ।
नहीं होती
घुटनों से नीचे तक सरकती हुई
आग
होठों पर अचुम्बित प्रश्नों के चिह्न !
सभी ओर के कुहासे से ढक गई है
मेरी देह
मैं लेने-देने की छोटी-छोटी आकांक्षाओं
के बीच नहीं टूटना चाहती
और लगाती हूँ बेमतलब ठहाके
केवल अपना मज़ाक़ करने के लिए !
मैंने अपने को परिभाषाएँ दिए बिना
जी लिया है
केवल जानने के लिए
तुम्हारा अर्थ
पहचानने के लिए
तुम्हारे गले से निकली
थरथराती आवाज़
और तुम्हारा नाम !