बाहर है अँधियारा - भीतर भी राजा के
क्या था कल - क्या है अब
सोच रहे शुद्धोदन
भिक्षु हुए सभी कुँवर
धीर नहीं धरता मन
सूख गये सभी ताल-पोखर भी राजा के
सात वर्ष पिछले थे
शनि की साढ़े-साती
देख दशा महलों की
फटती उनकी छाती
फेरे मुँह खड़े सभी चाकर भी राजा के
कौन उन्हें साजे अब
ढह रहे कँगूरे हैं
महलों में -आसपास
जगह-जगह घूरे हैं
झूठे हो गये सभी आखर भी राजा के