भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब तक नहीं लगाए हमने / नईम
Kavita Kosh से
अब तक नहीं लगाए हमने लेखे-जोखे,
अपनी सिफअत मुंशी नहीं, मुनीम नहीं है।
कालदेवता के आगे कब, कौन टिका है?
आप कह रहे बच्चू हमने खूब लिखा है।
लगा नहीं अबतक हमने कुछ किया-धरा हो-
लेखन केवल कुछ दस्ते या रीम नहीं है।
कौन खपाए माथा अपना पीछे मुड़कर,
बल रहते डैनों में जाना आगे उड़कर
जाग मछिंदर गोरख आया, मार मुझे आ-
बैल सरीखी छेड़ी कोई मुहीम नहीं है।
अपना देशकाल, अपनों की मुझे ख़बर है,
जैसी जब मिल गई उसीमें किया सबर है;
कह न सकोगे मुँह भरकर यह कभी कि ये तो
अपना याद मुदर्रिस वही नईम नहीं है।
अब तक नहीं लगाए हमने लेखे-जोखे,
अपनी सिफअत मुंशी नहीं, मुनीम नहीं है।