अमुनी काटिये बेटी, लाब बनाइअ / अंगिका लोकगीत
प्रस्तुत गीत में बेटी को भारतीय नारी के उपयुक्त उत्कृष्ट शिक्षा दी गईहै। संध्या समय दीपक जलाकर घरों में दिखलाने और देवता के नजदीक रखने, प्रातः उठकर आँगन बुहारने, भोजन को ढककर रखने, अतिथियों के आने पर उनका सत्कार कर भोजन कराने, सास-ननद की बातों का उत्तर न देने तथा अच्छी तरह ससुराल में रहने का निर्देश किया गया है। कुशल गृहिणी में इन गुणों का होना अत्यंत आवश्यक है।
अमुनी<ref>आम का पेड़</ref> काटिये<ref>काटकर</ref> बेटी, लाब<ref>नाव</ref> बनाइअ<ref>बनवाना</ref>।
जाबुनी<ref>जामुन का पेड़</ref>काटियें बेटी, पतुआर<ref>पतवार</ref> बनाइअ॥1॥
साँझ के बेरी<ref>समय</ref> बेटी, साँझअ जोगाइअ<ref>साझअ जोगाइअ= सांध्यदीप जलाना तथा सभी घरों में दिखलाना</ref>।
अति रे परातअ<ref>प्रातः</ref> बेटी ऐंगना<ref>आँगन</ref> बहारिअ॥2॥
नीके सूखे बेटी, ससुरा बसिहऽ।
ढानल<ref>राँधा हुआ; पकाया हुआ</ref> भात बेटी, झापना<ref>ढक्कन</ref> दिहऽ।
दसो एतअ<ref>आये; आयगा</ref> बेटी, दसो जमइअ<ref>खाना खिलाना</ref>॥3॥
सास बचन बेटी, उतरो ना दिहऽ।
ननदी बचन बेटी, उतरो ना दिहऽ॥4॥