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आँख खोल के देखऽ / जयराम दरवेशपुरी

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आँख खोल के देखले भइया
आँख खोल के देख
दुश्मन दोस्त बिलगावऽ पड़तो
के हे बद, के नेक

एक करऽ हे जन-जन शोषण
एक भरऽ हइ पेट
एक हे जग के पालेवाला
दोसर मटियामेट

कोय बइठल गटागट गिले
छुप-छुप दूध मलइया
कोय पोछऽ हे लोर टघारी
कोय छीनइ आन कमइया

जेकरे बूझऽ ही हम निम्मन
ऊहे दे देहइ धोखा
दौलत के कचगर रसरी से
भर रहलइ हे लादा कोंखा

कोय जान लुटइलक अप्पन
दुश्मन मार भगवाइ ले
मइया के चूड़ी बचवइ ले
झंडा गगन उड़ावइ ले।