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आईना / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
यक़ीन करो मुझ पर
तुम्हारा ही आईना हूँ मैं
वे ख़्वाहिशें जो सींचती रही हैं मुझे
तुम्हें पाने की ही ख़्वाहिश थी
यक़ीन करो जो मुझ पर
ढूँढ़ती थी जब ज़िंदगी साहिल
निगाहों में तुम्हारा ही अक्स हुआ
करता था, वे अनुभूतियाँ
जो अत्यंत रेशमी कोमलता से जीवित थीं
वजूद के भीतर मुझमें
यक़ीन करो जो मुझ पर
उनके सृजनकर्ता तुम ही थे ।