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आओ सीखें हम भी / सत्यनारायण सोनी

 
आओ,
सीखें
खेजड़े
फोग
खींप से
जो रह लेते
तपते रेगिस्तान में,
सह लेते
धूल-धक्कड़ वाली
आंधियों के थपेड़े,
जीते हैं
जलाभाव में भी।

तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद
पा लेते हैं
कैसी-कैसी अनुकूलताएं,
उनकी जड़ें
खोज लेती हैं
रेत के सागर में घुले
जलकणों को।

अपने हक की खातिर
अनवरत जूझते हैं वे।

2004