भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी में / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
आदमी जब इकट्ठे होते हैं
आदमी से घात करते हैं
बिजली के
तारों पर बैठी
चिड़िया ने चिड़िया से
बातें की
आदमजात में ही हुए हैं-
ढोला और मरवण…
उनकी बातें तो छोड़िए
अब तो
आदमी में ही
आदमी
कब होता है
लेकिन …?
अनुवाद : नीरज दइया