आमों में बौर आ गए
डार-पात फुदकने लगे
कब के सिर मौर आ गए ।
खुली पड़ी धूप की किताब
रंगों के बँट रहे खिताब
जाँबाजों की बस्ती में
कुछ थे कुछ और आ गए ।
आमों में बौर आ गए
डार-पात फुदकने लगे
कब के सिर मौर आ गए ।
खुली पड़ी धूप की किताब
रंगों के बँट रहे खिताब
जाँबाजों की बस्ती में
कुछ थे कुछ और आ गए ।