Last modified on 13 अप्रैल 2011, at 21:23

आम में बौर आ गए / देवेन्द्र कुमार

आमों में बौर आ गए
डार-पात फुदकने लगे
कब के सिर मौर आ गए ।

खुली पड़ी धूप की किताब
रंगों के बँट रहे खिताब
जाँबाजों की बस्ती में
कुछ थे कुछ और आ गए ।