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आशा द्वारी पर खाड़ोॅ हम्में / जटाधर दुबे
Kavita Kosh से
कहिया सें टेरै छी रसता
चौंके छी हर आहट पर,
देखी केॅ हुनका तड़पी उठलां
व्याकुल मन सिसकी उठलै।
सूनापन हमरा खलेॅ छै
पागलपन हमरोॅ बढ़ै छै,
बार-बार मन ई हमरोॅ
देखी केॅ तोरा सिहरै छै।
तोरोॅ पावन चरणोॅ के पड़थैं
आलोड़ित होय छै हमरोॅ कण-कण,
तोंय गीत बनोॅ हम्में सुनबैया
आबी सुरभित करि दे हमरोॅ तन-मन।
काँटा के पथ पर छी हम्में
बालू के कण-कण पर हम्में,
लहर-लहर पर छहरौं हम्में
आवोॅ आशा द्वारी पर खाड़ोॅ हम्में।