आश्ना‚ नाआश्ना‚ अच्छा‚बुरा कोई तो हो / अजय अज्ञात
आश्ना‚ नाआश्ना‚ अच्छा-बुरा कोई तो हो
ज़िंदगी के इस सफ़र में हमनवा कोई तो हो
मुश्किले हालात में मुश्किल कुशा कोई तो हो
पारसाई जो सिखाये पारसा कोई तो हो
सामना जुल्मो सितम का कर सके बाहौसला
जो जले तूफ़ान में ऐसा दिया कोई तो हो
ग़म पे ग़म पैहम मुझे क्यों दे रहा है ऐ खुदा
यूं सितम ढाने की आख़िर इंतिहा कोई तो हो
काश इन तारीकियों के टूट जाएं राबिता
रौशनी से निस्बतों का सिलसिला कोई तो हो
मेरे हाफिज़ ये बता मैं जाऊं तो जाऊं कहाँ
देने वाला इस जहां में आसरा कोई तो हो
रहमतों के अब्र बरसें भी तो कैसे दोस्तो
काफ़िरों की भीड़ में अहले-ख़ुदा कोई तो हो
नाज़नीं‚ मन मोहिनी इक कामिनी‚ गजगामिनी
चाँद से रुख़्सार वाली दिलरुबा कोई तो हो
पैकरेख़ाकी तुझे मैं छोड़ तो जाऊं मगर
बाद मेरे पढ़ने वाला फ़ातिहा कोई तो हो
थक गया हूं काटते चक्कर अदालत के ‘अजय'
हक़ में हो चाहे किसी के फ़ैसला कोई तो हो
शाइरों की भीड़ में ‘अज्ञात' सच्चा नेक दिल
नुक़्तादाँ ‘रहबर' के जैसा रहनुमा कोई तो हो