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आश्विन मास, शरद ऋतु शोभन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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आश्िवन मास, शरद ऋतु शोभन, शीतल शुभ्र चाँदनी रात।
कालिन्दी-जल निर्मल मनहर, मन्द सुगन्ध रहा बह वात॥
रत्न-सुदीप्त रुचिर नौकापर रहे विराजित श्यामा-श्याम।
करते मधुर विनोद परस्पर नौ-विलास-रत अति अभिराम॥
श्रीमति बोली-’सुनो प्राणधन ! तुम मुरलीकी छेड़ो तान।
सुन्दर-सुमधुर स्वर-लहरीमें मुझे सुनाओ रसमय गान॥
मैं खे लूँगी नाव, प्राण खेलेंगे रसमय खेल महान।
नयन-मधुप रसमा रहेंगे कर मुख-सरसीरुह-रस पान’॥
यों कह खेने लगी तरी कर दृष्टि अचचल पियकी ओर।
दृष्टि जमा श्यामा-मुख मुरली लगे बजाने नन्द-किशोर॥