भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आसमानों की परवाज़ कर / उत्तमराव क्षीरसागर
Kavita Kosh से
					
										
					
					चल  उठ  एक  नई  ज़िंदगी  का  आगाज़  कर,
पेट खाली ही सही आसमानों की परवाज़ कर ।
मान    भी    ले    अब   यह   ज़िद   अच्छी   नहीं,
मिल गया 'यूटोपिया' का रास्ता ये आवाज़ कर ।
लबों पे आने मत दे नाम तख्तो-ताज का,
बस   उसको   दुआ   दे,   'जा  राज  कर । 
लाख  करे  कोई  उजालों की बात, बहक मत, 
तू फ़क़त ज़िंदा रह और ज़िंदगी पे नाज कर ।
                                                              -१९९५  ई०
 
	
	

