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इज़्ज़तपुरम्-66 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
तजरबा
भाव और अलंकरण के
प्राण फूँक
बुतों में भी
डाल दे
वह चाल-ढाल
कि साफ सजीव
हरकत का भ्रम हो
ज्यादा रोशनी में
मामूली माल भी
चल जाये चमक में
दुर्गंध
दब जाये
कुछ देर इल्म
के इत्र में