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इतना क्यों शर्माएँ हम / मृदुला झा
Kavita Kosh से
उल्फत में लुट जायें हम।
जीवन है अभिनव उपहार,
इसका लुत्फ उठायें हम।
दुश्मन भी हो जाये दोस्त,
बढ़कर हाथ मिलाएँ हम।
सब जन मिल-जुलकर रह लें,
ऐसी जुगत भिड़ाएँ हम।
घर-घर में खुशहाली हो,
मिलकर जोर लगाएँ हम।
नैतिकता की बातें हों,
भ्रष्टाचार मिटाएँ हम।
स्वच्छ हवा पानी खातिर,
अनगिन पेड़ लगाएँ हम।