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उड़ान / दिनेश कुमार शुक्ल
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उड़ान
झपटा बाज
दाँव देकर बच निकला
वह बटेर
जैसे गुलेल से छूटा पत्थर
सीधे धँसता गया
गगन की नील झील में
थोड़ा थमकर
उठा झील के तल से
एक चमकता बुद्बुद
और सतह पर आकर नभ की
फूटा-जैसे
दमक उठा हो
सांध्य-गगन का
पहला उडुगन
दमक रहे हैं
आसमान में तारे बनकर
इस धरती के
छोटे-छोटे और बहादुर
चिड़िया चुंगन
जो उड़ते हैं
वही रोशनी दे पाते हैं
जितना जिससे बन पड़ता है
सूर्य चन्द्र उडुगन उल्का
खद्योत की तरह